सुशीला सिंह
जेंडर आधारित हिंसा को अक्सर एक व्यक्तिगत मुद्दा या कानूनी मुद्दे के रूप में देखते है; इसके बजाय हम जो हिंसा के पीड़ित व्यक्ति के जरूरतों को ध्यान में रखकर, सर्वाइवर केंद्रित दृष्टिकोण को अपनाकर, इसको बढ़ावा देकर, सर्वाइवर के अधिक मदद कर सकते है। खासकर के सर्वाइवर के स्वास्थ्य जरूरत, मानसिक स्वास्थ्य के जरूरतों को पूरा करके, उनकी खुद की निर्णय की क्षमता को बढ़ाने में, उनकी आत्मविश्वास को बढ़ाकर आप उनकी मदद कर सकते है।
समा की हालिया पहल जो कि बिहार, झारखंड व ऑडिशा राज्यों में ज़मीनी स्तर पर कार्यरत संस्थाओं व महिला और युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने की ओर रही है, उस के अंतर्गत इस विषय पर खूब सारी बातचीत करने का अवसर हमें मिला है।
क्या कर सकते हैं कि जो पहले से कर रहे हैं उसे और विकसित करें, साझा बनाएँ ताकि चुनौतीपूर्ण अकेलापन न महसूस हो, और जो नज़रिया व ज्ञान है उसे विकसित करें ताकि हमारी प्रतिक्रिया भी व्यापक बन जाए।
एक उदाहरण यहाँ सभी के समक्ष रख रही हूँ और याद कर रही हूँ:
एक ऐसा ही प्रयास के तहत जब हिंसा के खिलाफ 16 दिनका अभियान को हमने इस काम में भी सक्रिय किया। हालांकि ये अभियान एक वार्षिक वैश्विक प्रयास है, लेकिन मुझे लगता है कि इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए इस मुद्दे पर लगातार काम करने की जरुरत है, सक्रीय होने की जरुरतहै। इसी विचार के साथ इस लेख की रचना कर रही हूँ।
जेंडर आधारित हिंसा मानवाधिकारों का उल्लंघन का मुद्दा होते हुए भी इस पर बहुरूपी प्रतिक्रिया कमज़ोर है। पुरे विश्व में हिंसा को एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में पहचान मिल रही है। और हम कोविड-19 जैसे महामारी पर भी रोकथाम हासिल कर लिए , लेकिन हम जेंडर आधारित हिंसा से बचावव इसके स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं है ऐसा क्यों ?क्योंकि कहीं न कहीं अभी भी हम GBV (जेन्डर आधारित हिंसा) को संबोधित करने के प्रयास अक्सर सर्वाइवर के व्यापक अधिकारों की उपेक्षा करते हुए, पुलिसिंग और सजा पर ध्यान केंद्रित करते हैं। हमारे यह रणनीति सिस्टम को जवाबदेह बनाने में नाकाम रहती हैं विशेषकर स्वास्थ्य प्रणाली को।
GBV (जेन्डर आधारित हिंसा) एक प्रणालीगत मुद्दा है। मुझे लगता है कि इस ढांचागत मुद्दे का समाधान एक मजबूत बहु-क्षेत्रीय सहायता सेवाओं के समन्वयित प्रतिक्रियाओं में सर्वाइवर-केंद्रित दृष्टिकोण को लागू करना महत्वपूर्ण है। यह ज़रूरी है कि हर सेवा प्रदाता व राज्य के कर्तव्य वाहक का हस्तक्षेप सर्वाइवर की शारीरिक स्वायत्तता और निर्णय लेने के उनके अधिकार को स्वीकार कर बढ़ावा दें। साथ ही सर्वाइवर के लिए एक मजबूत और संवेदनशील स्थानीय सहायता नेटवर्क परिवर्तन लाने और जीबीवी से समग्र रूप से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है। मेरी आशावादी अपेक्षा है कि हम आने वाले16 दिवसीय अभियान 2024 में एक व्यापक संवेदनशील स्वास्थ्य प्रणाली कारगर हेतु आवाज़ें विकसित करने के केबारे में सोच सकतेहै ? कहने की आवश्यकता नहीं कि हमें इस बार भी साझा सुझाव का इंतजार रहेगा और इसे फिर से दोहरा पाएंगे।
क्योंकि कुछ दोहराव अच्छे हैं!
विडिओ का लिंक: पिछले 16 दिवसीय अभियान का संदेश
सुशीला सिंह समा टीम के साथ हैं। वो पिछले एक दशक से इस मुद्दे के साथ जुड़ी हैं।