अंतराष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य दिवस-28 May जो महिला स्वास्थ्य अधिकार पर केंद्रित है
संगीता साहू*
हमारे पितृसतात्मक समाज में महिलाओं के स्वास्थ्य का विषय भी काफ़ी सारे पहलुओं से जुड़ा हुआ रहता है। जेन्डर संबंधित भूमिकाएँ, स्थान, संसाधानों तक पहुँच इस स्वास्थ्य को निर्धारित करता है; इसी के साथ साथ सामाजिक व राजनैतिक ढांचे जिसमें की स्वास्थ्य नीतियाँ, कानून वग़ैरा होते हैं वे भी काफ़ी प्रभावशाली रहते हैं। ऐसे में महिला स्वास्थ्य की बातचीत एक जटिल बात हो जाती है लेकिन एक महत्वपूर्ण बात भी। अभी यह महामारी कोविड-19 के संदर्भ में भी हुमने जाना है महिलाओं के लिए परिस्थिति और भी संकटपूर्ण हो गई है|
जब हम महिलाओं की बात करते है वह पहले से ही हाशिये पर रही है उसमे जब हम आदिवासी या दलित महिला की बात करते है, उनकी हाशियाकरण की तीव्रता और भी अधिक मात्रा में बढ़ जाती है | ‘महिला स्वास्थ्य’ का अर्थ ज़्यादातर गर्भावस्था तथा प्रसव तक ही सिमित किया जाता है एवं मातृ स्वास्थ्य सेवाओं को भी व्यापक रूप से नहीं देखा जाता है, ये केवल महिलाओं की मां बनने की भूमिका का ही ध्यान कराती हैं जिसका प्रयाय सीधा-सीधा जेन्डर भूमिकाओं से है जिसके बारे में हुमने शुरू में बात की। महिलाओं को हमेशा से एक बच्चा पैदा करने वाली यन्त्र की तरह देखा गया है जो परिवार को बच्चा जनकर देती है | महिलाओं का स्वास्थ्य तथा उनसे सम्बंधित अन्य आवश्यकताओं को उनके शारीरिक स्थिति या मानसिक स्थिति के बारे में कोई नहीं सोचता | महिलाओं के लिए उनको चयन या निर्णय लेने का अधिकार है, इस बात का अवसर नहीं दिया जाता है उसी सामाजिक व राजनीतिक ढांचे में जो की पितृसतात्मक है।
ऐसे में महिला स्वास्थ्य पर बात करते हुए अनेक सवाल ध्यान में आते है जैसे स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुँच कैसी है ? क्या वह स्वास्थ्य तंत्र में सेवाओं को लेने में अपने आप को सहज महसूस करती है ? यह सब स्वास्थ्य सेवाएँ महिलाओं के लिए कितना मजबूत बनाया गया है ?
एक व्यक्ति का स्वास्थ्य उसकी खुशहाली से भी जुड़ा होता है। अच्छा स्वास्थ्य एक ऐसी व्यक्तिगत व सामाजिक अनुभूति है जिसमे महिला अपने आप को सक्रिय,समझदार और आत्म विश्वास तथा योग्य महसूस कर सकती है | जिसमें उसको शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूती मिलती है | जब गर्भधारण, गर्भसमापन या परिवार नियोजन की बात आती है कभी भी महिलाओं को उनकी राय देने का मौका नहीं दिया जाता है | महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाओं तक जाने में हिछ्किचाहट इसलिए भी पाई जाती है क्यूंकि जो स्वास्थ्य तंत्र है वह महिलाओं के इच्छा के अनुरूप नहीं बनाया गया है | स्वास्थ्य प्रणाली में अलग- अलग प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ता हैं जो आदिवासी या दलित समुदाय की महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाओं को लेने से वंचित करती है | जब परामर्श केंद्र में महिला को परामर्श दिया जाता है तो यह बोला जाता है की आपके परिवार यह चाहते है इसलिए कर लीजिये, आपकी उम्र हो गई है इसलिए कर लीजिये, आपको आगे इनके साथ रहना है इनको दुखी मत कीजिये इत्यादि जिसमे महिला अपने खुद के बारे में सोच सके ऐसा परामर्श उसको कभी नहीं दिया जाता | यह सोच की महिला भी अपने स्वास्थ्य के बारे में सोच सकती है-यही चर्चा करना अपने में ही अधिकार की बात को उजागर करती है |
अगर इसको एक दुसरे तरीके से समझा जाए की महिला अपना ख्याल अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए ले विभिन्न प्रकार की सेवाएँ जैसे की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएँ, गर्भ निरोधक सेवाएँ, सुरक्षित गर्भसमापन के पूर्व और पश्चात् परामर्श और देखभाल इत्यादि को एक सकारात्मक ढांचे में डालने की जरुरत दिखती हैं और इस सब के वजह से महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुच के अधिकार को एक मजबूती मिलेगी | इन यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं को महिला की मजबूरी, या उनकी लाचारी से जोड़ कर नहीं देखें –बल्कि इनको महिलाओं के निर्णय लेने के अधिकार, व उनकी क्षमताओं को उजागर करने की परस्थिति के संदर्भ में देखना चाहिए।
उचित शिक्षा, परामर्श, और जेन्डर समानता व सामाजिक न्याय का संकल्प–स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच को बेहतर बना सकते हैं| महिलाओं को अपने निर्णय लेने का अधिकार मिलना चाहिए और यह मानव अधिकार की दायरा में आता है |
*संगीता सामाजिक कार्यकर्ता हैं, छत्तीसगढ़ में रहती हैं और समुदाय स्तर के हस्तक्षेप व महिलाओं के साथ चर्चा बनाने में रुचि रखती हैं। हाल के समय में वो समा के साथ हाशियबद्ध समुदाय के परिपेक्ष्य में सुरक्षित गर्भसमापन अधिकार के मुद्दे की पहल में जुड़ी हुई हैं।